भू-माफियाओं का गढ़ बना रीवा, चर्चित 30 एकड़ भूमि फर्जीवाड़े में EOW ने दर्ज की FIR
रीवा शहर के रतहरा क्षेत्र की 30 एकड़ जमीन घोटाले में बड़ा खुलासा हुआ है। इस जमीन को एक मृत व्यक्ति, स्व. शिवाजी सिंह, के नाम पर फर्जी रूप से जिंदा बताकर कई बार बेचा गया। अब इस मामले में आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ (EOW) ने एफआईआर दर्ज कर ली है।

रीवा शहर के रतहरा स्थित 30 एकड़ भूमि जो कि काफी समय से रीवा शहर वासियों एवं मीडिया के बीच चर्चा का विषय बना हुआ है, जिसमें मृत शख्स को ज़िंदा बताकर उसकी 30 एकड़ ज़मीन बेच दी गई जिसमें प्रशासनिक मिलीभगत भी सामने आई थी,अब पूरे मामले में शिकायत के बाद आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ (ईओडब्लू) ने एफआईआर दर्ज कर ली है, मामले की जानकारी जैसे ही भू-माफिया को हुई तो शिकायतकर्ता ने ही अपने बयान पलट दिए।
मिली जानकारी अनुसार बता दे उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद निवासी मांडवी सिंह और शिवेंद्र विक्रम सिंह ने ईओडब्लू को बताया कि उनके पिता स्व. शिवाजी सिंह ने 1972 में रीवा के ग्राम रतहरा में 30 एकड़ ज़मीन खरीदी थी। 2014 में उनका निधन हो गया लेकिन हैरान करने वाली बात यह है कि 2014 से 2024 के बीच उसी ज़मीन को ‘जिंदा शिवाजी सिंह’ के नाम से बार-बार बेचा गया। शिकायतकर्ताओं के मुताबिक, असल में यह फर्जीवाड़ा दिग्विजय सिंह नाम के व्यक्ति ने किया उसने खुद को शिवाजी सिंह बताकर आधार कार्ड, वोटर आईडी, यहां तक कि निवास प्रमाण पत्र बनवा लिया और सरकारी रिकॉर्ड में खुद को ज़िंदा घोषित कर दिया।
फर्जी दस्तावेज़ों से राज खुला
आधार कार्ड: जारी – 5 अगस्त 2020 वोटर आईडी जारी 31 मार्च 2016 निवास प्रमाण पत्र: पता 15/441, वार्ड 15, रीवा (जो 1947 में अस्तित्व में ही नही था) अब सवाल उठता है कि 1947 में जो पता था ही नहीं, वो दस्तावेजों में कैसे दर्ज हो गया? क्या अफसर सो रहे थे या जानबूझकर मुंह फेर लिया गया ? शिकायत में यह भी कहा गया कि जमीन की देखरेख के लिए 1999 में आलोक सिंह के नाम रजिस्टर्ड मुख्तारनामा भी बना था, लेकिन फिर भी भूमाफिया ने उस पर कब्ज़ा कर लिया।
भू-माफिया का खेल में रजिस्टर से लेकर राजस्व तक शामिल
रीवा के इस भू-माफिया गैंग ने न केवल दस्तावेज तैयार कर लिए, बल्कि राजस्व विभाग, पंजीयन कार्यालय, स्थानीय पुलिस और नगर प्रशासन तक को मैनेज कर लिया। राजेंद्र सिंह राज नाम के व्यक्ति का नाम भी इस खेल में सामने आया है, जो कथित रूप से स्थानीय रसूखदारों से मिला हुआ है। सूत्र बताते हैं कि एक प्रभावशाली सत्ताधारी नेता का भी इसमें हाथ है, जिसने पूरे नेटवर्क को संरक्षण दिया। ईओडब्ल्यू ने अब तक की जांच में साफ पाया कि जमीन को अवैध तरीके से बेचा गया और शासन-प्रशासन की अनदेखी मिलीभगत से यह सब संभव हुआ।
एफआईआर दर्ज, अगले ही दिन शिकायतकर्ता का पलटा बयान
कूट रचित दस्तावेजों के आधार पर शासन प्रशासन की मदद से फर्जी तरीके से जमीन हड़पने वाले रीवा के भू- माफिया का प्रभाव कितना है आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ में मामला दर्ज होते ही शिकायतकर्ता स्व. शिवाजी सिंह के विधिक वारिस पुत्र शिवेंद्र विक्रम सिंह द्वारा उसके अगले ही दिन यानी 29.4. 2005 को आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ में एक शपथ पर प्रस्तुत किया जाता है जिसमें यह उल्लेख किया जाता है कि उक्त जमीन मेरे स्व. पिताजी की नहीं है रीवा के कुछ लोग मेरे पास आए मुझे पेपर दिखाए, जमीन के संबंध में सभी आवश्यक दस्तावेज दिए और यह कहा कि उक्त जमीन मेरे पिताजी स्व. शिवाजी सिंह की है मैं उनके बहकावे में आ गया उन लोगों ने मुझे भ्रमित किया, लालच में आकर मैंने उनसे उक्त जमीन का अनुबंध कर लिया, बाद में पता चला की जो लोग मेरे पास आए थे वह लोग जमीन की दलाली का काम करते हैं और अच्छे व्यक्ति नहीं है इन्होंने मुझे अंधेरे में रखकर फर्जी पेपर दिखाकर ऐसा कराया है, जबकि मेरे पिताजी ने अपने जीवन काल में मुझे कभी यह नहीं बताया था कि उनकी कोई जमीन रीवा म.प्र.में है।
अब बडा सवाल यह उठता है कि शिकायत में दिए गए शपथ पत्र में शिवेंद्र विक्रम सिंह एवं मांडवी सिंह ने कई बातों का उल्लेख किया है जिसमें उन्होंने स्पष्ट लिखा है कि मैंने अपने रिश्तेदार को जमीन की देखरेख हेतु मुख्तारनामा दिया है, उक्त जमीन के कई मामले राजस्व न्यायालय एवं जिला न्यायालय में भी चल रहे थे इन लोगों ने पूर्व में प्रेस कॉन्फ्रेंस कर भी इस संबंध में जानकारी दी थी, उनके वकील ने कई बार मीडिया को यह सब जानकारी दिया, इतना सब होने के बाद अचानक से शिकायत दर्ज होते ही शपथ पत्र प्रस्तुत करना यह स्पष्ट दर्शाता है कि शिवेंद्र विक्रम पर किस तरह भू-माफिया का दबाव है। बता दे कूट रचित दस्तावेजों के आधार पर शासन प्रशासन कि मिलीभगत से मृत व्यक्ति को जिंदा दिखाकर जमीन हड़पने वाले भूमाफियाओं के ऊपर एक सत्ताधारी नेता का हाथ है, राजस्व विभाग पंजीयन विभाग, सभी जगह इन्होंने अपने प्रभाव और पैसे के दम पर जो चाहा वह करा लिया।
जिला प्रशासन और पुलिस प्रशासन पर इनका इतना दबाव था कि शिकायतकर्ता कई सालों से चक्कर लगा रहे थे उनकी सुनवाई नहीं हुई जबकि राजस्व प्रकरण में मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव के स्पष्ट निर्देश हैं कि शीघ्र निराकरण किया जाए यह तो आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ ने मामले की गंभीरता को समझ कर मामला पंजीबद्ध किया।
गेंद आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ के पाले में
आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ ने शिकायत में प्राप्त दस्तावेजों एवं शिकायतकर्ता के लिखित बयानों के आधार पर मामला पंजीबद्ध किया है। विभागों को पत्र जारी कर उपरोक्त खसरा नंबरो की जमीन की खरीदी बिक्री पर लोग रोक लगा दिया था,अन्य संबंधित विभागों को पत्र जारी कर जरूरी दस्तावेजों की जानकारी मांगी गई है। आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ की सक्रियता को देखते हुए यह लगने लगा था कि इस फर्जी भू-माफिया के साथ-साथ शासन प्रशासन के कई अन्य कर्मचारियों,अधिकारियों के कारनामे सामने आ जाएंगे इस कारण शिवेंद्र विक्रम के द्वारा शपथ पत्र प्रस्तुत कर ऐसा किया गया।
मुख्य सचिव और पुलिस महानिदेशक तक पहुंचा मामला
बता दे इस हाई प्रोफाइल फर्जीवाड़ा की जानकारी प्रदेश के मुख्य सचिव एवं पुलिस महानिदेशक को भी है। ऐसा समझ में आ रहा है कि आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ उपरोक्त मामले की जांच निष्पक्ष रूप से करेगा और जो भी इसमें शामिल है वह चेहरे बेनकाब होंगे विभाग को झूठी जानकारी देना और विभाग को जो कि एक जांच एजेंसी है इस तरह गुमराह करना भी अपराध की श्रेणी में आता है विभाग इस पर भी नजर रखे हुए हैं और आगे आने वाले समय में उन पर भी कार्यवाही होने की संभावना व्यक्त की जा रही है।