प्रशासनिक अनदेखी: निजी स्कूलों में निर्धारित मापदंडों का अभाव

अनुभवहीन शिक्षकों के हाथों देश के कर्णधारों का भविष्य. मऊगंज जिले के अधिकतर निजी विद्यालयों में अप्रशिक्षित शिक्षकों का जमाबड़ा

प्रशासनिक अनदेखी: निजी स्कूलों में निर्धारित मापदंडों का अभाव

राजेंद्र पयासी-मऊगंज

बेरोजगारों का शोषण होना आम बात रही है। पर इसकी बहुत बड़ी झलक शिक्षा के क्षेत्र में निजी विद्यालयों में देखने को मिलती है। जहां ऐसे बेरोजगार युवा अपने जीवकोपार्जन  के लिए बहुत कम पगार पर नौकरी करते हैं। वहीं दूसरी ओर ऐसे निजी विद्यालयों के संचालक अधिकांशतः अप्रशिक्षित युवक एवं युवतियो का शोषण करते हुए उन्हें शिक्षण कार्य हेतु रखते हैं। स्कूल संचालकों की इस नीति से उनको तो जरूर फायदा होता है। क्योंकि उन्हें ऐसे अप्रशिक्षित युवकों को कम पगार देना पड़ता है। पर वहीं दूसरी तरफ उन नौनिहाल बच्चों के भविष्य के साथ अवश्य खिलवाड़ हो जाता है। जिन्हें जिस स्तर की शिक्षा मिलनी चाहिए तो उस अस्तर की नहीं मिल पाती है। जिला मुख्यालय सहित ग्रामीण क्षेत्रों में संचालित निजी विद्यालयों में नियमों का पालन नहीं किया जा रहा।

नियमों को ताक में रखकर स्कूलों का संचालन

विद्यालय संचालकों द्वारा छात्रों के भविष्य की चिंता करने की बजाय कम मानदेय में शिक्षक नियुक्त करने सहित अनेक नियम विरुद्ध कार्य करने में जुटे हुए हैं। वही प्रशासनिक अनदेखी के कारण नियमों को ताक में रखकर स्कूलों का संचालन किया जा रहा है। उल्लेखनीय है कि जिले में संचालित ज्यादातर निजी स्कूलों में निर्धारित मापदंडों का पूर्णतया अभाव है। यहां तक की बुनियादी सुविधाएं भी निजी स्कूलों में उपलब्ध नहीं कराई जा रही है। इन विद्यालयों का निरीक्षण प्रतिवर्ष शिक्षा विभाग के अधिकारियों द्वारा किया जाता है। इसके बाद भी निर्धारित मूलभूत मापदंडों के बिना निजी विद्यालयों का संचालन शिक्षा विभाग की कार्य शैली पर सवाल खड़े करते हैं।

जिले में कई निजी विद्यालय ऐसे भी संचालित है। जो कि अभिभावकों से शिक्षा के नाम पर वर्षभर की सेवा शुल्क लेते हैं। किंतु शिक्षकों को सिर्फ 8 या 9 माह का मानदेय देते हैं। बेरोजगारों की स्थिति में शिक्षकों को दो वक्त की रोटी के लिए भी लाले पड़ जाते हैं। मजबूरी में से कई शिक्षक मजदूरी करते देखे गए। धार्मिक दृष्टिकोण में गुरु को प्रथम पूज्य माना गया है साथ ही समाज में प्रथम स्थान दिया गया है। किंतु वास्तविकता की धरातल पर सार्वजनिक शोषण भी सिर्फ निजी विद्यालयों के शिक्षकों का होता प्रतीत हो रहा है।

अप्रशिक्षित शिक्षकों के कंधे पर भार 

निजी स्कूलों में शिक्षकों के नियुक्ति में भी स्कूल प्रबंधन लापरवाही बरतते हैं। प्रशिक्षित शिक्षकों के बजाय अप्रशिक्षित शिक्षकों के कंधे पर ही भार सौंपा जाता है। यहां शिक्षकों के वेतन बढ़ाने के नाम पर भले ही शहर के प्राइवेट विद्यालयों में बच्चों की फीस बढ़ा दी जाए लेकिन हकीकत कुछ और ही है फीस बढ़ोतरी का लाभ शिक्षकों को कम ही मिलने की उम्मीद है। विद्यालय प्रबंधन ही पूरा लाभ निकालने की फिराक में हमेशा लगे रहते हैं। बताया गया है कि अगर योग्य शिक्षकों को विद्यालय प्रबंधन रखेगा तो उन्हें उस हिसाब से वेतन भुगतान करना पड़ेगा वेतन भुगतान ज्यादा ना करना पड़े इसलिए ऐसे अप्रशिक्षित शिक्षकों को रखा जाता है। जिन्हें कम वेतन दिया जा सके।

निजी विद्यालयों में सुविधाओं का अभाव 

निजी विद्यालयों के संचालन के लिए शिक्षा विभाग से मान्यता लेनी पड़ती है। इसके लिए मानक निर्धारित किए गए हैं जिसका पालन मान्यता के पूर्व ही सुनिश्चित करना होता है। इन मानको में विद्यालय के संचालन के लिए पर्याप्त रूप से भवन की उपलब्धता के अलावा अन्य जरूरी अधोसंरचना का होना भीअति आवश्यक है। लेकिन जिले में संचालित कई विद्यालय किराए के ऐसे मकानों में चल रहे हैं जहां आवश्यक सुविधाओं की नितांत कमी है। साथ ही विद्यार्थियों को विद्यालय तक लाने व ले जाने वाले वाहनों के संचालन में भी विद्यालय में मनमानी करते हैं। शासन के निर्देशों के अनुसार एवं विद्यालय वाहनों के चालकों को समुचित लाइसेंस ड्रेस कोड के साथ ही पर्याप्त अनुभव होना भी जरूरी है। वही बच्चों को स्कूल लाने ले जाने का कार्य एक शिक्षक की देखरेख में संपादित किया जाना चाहिए। लेकिन विद्यालयों द्वारा नियमों की अनदेखी करते हुए नौसिखियों को बतौर चालक नियुक्त कर दिया जाता है।