EXPLAINER: जातिगत जनगणना क्यों जरुरी?
भारत सरकार ने दशकों बाद जातिगत जनगणना को मंजूरी देकर एक बड़ा नीतिगत परिवर्तन किया है। यह फैसला राजनीतिक मामलों की कैबिनेट समिति द्वारा लिया गया, जिसे लेकर विपक्षी दलों ने इसे अपनी जीत बताया है। समर्थकों का मानना है कि इससे पिछड़े वर्गों की सामाजिक और आर्थिक स्थिति स्पष्ट होगी और उन्हें उचित राजनीतिक प्रतिनिधित्व मिल सकेगा।

बुधवार 30 अप्रैल को आखिरकार केंद्र सरकार ने जातिगत जनगणना पर अपना फैसला सुनाते हुए इसे मंजूरी दे दी. CCPA यानी की राजनीतिक मामलों पर कैबिनेट कमेटी की बैठक के बाद ये फैसला लिया गया. जिसके बाद केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने जानकारी देते हुए बताया कि अब जातियों की गिनती जनगणना के साथ ही की जाएगी. मोदी कैबिनेट के इस फैसले के बाद राहुल गांधी ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर इसका श्रेय विपक्षी दलों को दिया और कहा कि विपक्ष काफी समय से इसकी मांग कर रही थी, वहीं तेजस्वी यादव ने इसे विपक्ष की जीत बताया.
सबसे पहले जानते हैं कि जातिगत जनगणना है क्या..?
जैसा कि नाम से ही पता चल रहा है जातिगत जनगणना यानी की जाति के आधार पर जनगणना. ये कोई नया विचार नहीं है. जब देश आजाद भी नहीं हुआ था तब भी देश में जातिगत जनगणना कराई गई थी. 1931 में अंग्रेजों ने भारत में जातिगत जनगणना करवाई थी.
आजादी हासिल करने के बाद भारत ने जब साल 1951 में पहली बार जनगणना की, तो केवल अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति से जुड़े लोगों को जाति के नाम पर वर्गीकृत किया गया. तब से लेकर भारत सरकार ने एक नीतिगत फैसले के तहत जातिगत जनगणना से परहेज किया और सुप्रीम कोर्ट ने भी इस मसले से जुड़े मामलों में दोहराया कि कानून के हिसाब से जातिगत जनगणना नहीं की जा सकती, क्योंकि संविधान जनसंख्या को मानता है, जाति या धर्म को नहीं.
अब आप सोच रहे होंगे कि जब देश में 1931 के बाद जातिगत जनगणना कराई ही नहीं गई तो हमें ये कैसे पता चला कि देश में कितने प्रतिशत पिछड़े या जनरल हैं. दरअसल NSSO यानी की National Sample Survey Organisation, जो की भारत का एक प्रमुख सामाजिक-आर्थिक सर्वेक्षण संगठन है, ये हर साल देश में कितने जाति के, कितने लोग हैं इसका डेटा जारी करता है.
लेकिन सवाल है की फिर जातिगत जनगणना क्यों..? जब देश में कितने जाती के कितने लोग है इसका पता हमें चल ही जाता है तो.. दरअसल देश में SC-ST और GENERAL केटेगरी की तो गिनती होती ही है.. लेकिन देश में कितने OBC या EBC है उनकी जानकारी हमें नही है. रिपोर्ट्स के अनुसार 1931 में जो जातिगत जनगणना करायी गयी थी उनमे OBC को तो शामिल ही नहीं किया गया था, इतना ही नहीं EBC का कांसेप्ट तो उस समय तक देश में था भी नहीं..
देश में जातिगत जनगणना से क्या फायदा होगा..?
जातिगत जनगणना का समर्थन करने वालोंं का यह कहना है कि इसके जरिए पिछड़े और अति पिछड़े वर्ग के बारें में बहुत कुछ पता चल सकेगा. उनकी शैक्षणिक के साथ ही सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक स्थिति के बारें में भी जानकारी मिल सकेगी. साथ ही इससे आंकड़ों में स्पष्टता आएगी. क्योंकी अभी सिर्फ अंदाजा है की देश की आबादी में 52 फ़ीसदी लोग पिछडे और अति पिछडे जाति के हैं. लेकिन अगर जातिगत जनगणना होती है तो ये साफ पता चल जायेगा की कितने लोग SC है, कितने OBC और कितने EBC. फिलहाल ओबीसी समुदाय के नेताओं का यह मानना है कि संख्या के हिसाब से उनकी राजनीतिक हिस्सेदारी काफ़ी कम है. अगर जातिगत जनगणना होती है तो उनके जनसँख्या के आधार पर उनकी राजनितिक हिस्सेदारी बढ़ा दी जाएगी.
बता दे की हाल ही में बिहार और कर्नाटक जैसे राज्यों ने भी अपने-अपने स्तर पर जातिगत जनगणना करवाई थी. बिहार मे हुए सर्वे के अनुसार राज्य में अति पिछड़ा वर्ग 27.12 प्रतिशत, अत्यन्त पिछड़ा वर्ग 36.01 प्रतिशत, अनुसूचित जाति 19.65 प्रतिशत, अनुसूचित जनजाति 1.68 प्रतिशत और अनारक्षित यानी सवर्ण 15.52 प्रतिशत हैं.
राजनितिक गलीयारे में इसे लेकर क्या चल रहा है..?
मोदी सरकार ने जब से ये फैसला लिया है तभी से लोगों के मन में खास कर विपक्ष के नेताओं में ये सवाल है की इतने समय से जातिगत जनगणना का विरोध कर रही BJP पार्टी इस फैसल के लिए राजी कैसे हुई..? क्योंकी शुरू से ही देखा जाये तो BJP नै कभी भी जातिगत जनगणना का सपोर्ट नहीं किया, मोदी का मानना था की जातिगत जनगणना देश के लोगों के मन में बटवारें की भावना को बढ़ावा दे सकता है. लेकिन एक पर एक ये फैसला लेना वाकई चौकाने वाला है..
कुछ लोगों का मानना है की बीजेपी का ये फैसला उसे आने वाले बिहार विधानसभा चुनाव में लाभ दे सकता है. क्योंकी बिहार में तेजस्वी यादव शुरू से जातिगत जनगणना का समर्थन करते आ रहे है. कुछ का कहना है की देश में OBC वर्ग के लोग सबसे ज्यादा है ऐसे में BJP इन आंकड़ों का इस्तेमाल वोट बैंक बढ़ाने के लिए भी कर सकती है.
आरएसएस के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर ने एक बयान में कहा था कि संघ जाति जनगणना के पक्ष में है. ऐसे में ये अंदाज़ा लगाया जा रहा है की संघ के फैसले के बाद ही BJP का माइंडसेट जातिगत जनगणना को लेकर चेंज हो गया. दरअसल सितंबर 2024 में सुनील आंबेकर ने एक बयान देकर इसका समर्थन किया था लेकिन ये भी कहा था कि ये संवदेनशील मामला है और इसका इस्तेमाल राजनीतिक या चुनावी उद्देश्यों के लिए नहीं किया जाना चाहिए. उन्होंने कहा था कि इसका इस्तेमाल पिछड़ रहे समुदाय और जातियों के कल्याण के लिए होना चाहिए.
बात करें विपक्षी पार्टी की तो कांग्रेस ने शुरू से ही इसका समर्थन किया है, 2010 में डॉ. मनमोहन सिंह ने कहा था कि जाति जनगणना के मामले पर कैबिनेट में विचार किया जाना चाहिए। हाल ही के दिनों में इंडिया गठबंधन भी लगातार सरकार पर जातिगत जनगणना कराने के लिए जोर दे रही थी.
बीबीसी को दिए एक इंटरव्यू में राजनीतिक विश्लेषक डीएम दिवाकर ने बताया की,
''मोदी सरकार ने जब जाति जनगणना से इनकार किया तो विपक्ष ने इसे पूरे देश में मुद्दा बना दिया." "इस बीच बिहार और कर्नाटक ने अपने-अपने तरीके से जो जाति सर्वे कराया और उससे पता चल गया कि पिछड़ी और अति पिछड़ी जातियों की कितनी आबादी है और उस हिसाब से राजनीति में उनकी कितनी हिस्सेदारी बन सकती है.अब मजबूरी में मोदी सरकार को जाति जनगणना कराने का फ़ैसला लेना पड़ा है.''
खैर जो भी हो तमाम अटकलों के बाद आखिरकार देश में जातिगत जनगणना होगी. ये कब तक होगी और इसके परिणाम कब तक आयेंगे ये जल्द ही मोदी सरकार डिक्लेअर कर देगी.