घरों के बाहर लगाएंगे कॉपर की डिजिटल प्लेट

हर घर का यूनिक ई-एड्रेस होगा। घरों के बाहर लगने वाली डिजिटल प्लेट पर उस मकान या भवन की पूरी कुंडली रहेगी। यह प्रोजेक्ट भोपाल में लगभग आठ साल पहले शुरू किया गया था। कुछ घरों में प्लेट लगाने के बाद इसकी बहुत उपयोगिता नहीं देखते हुए प्रोजेक्ट ड्रॉप कर दिया गया था। अब यही योजना इंदौर लागू करने जा रहा है।

घरों के बाहर लगाएंगे कॉपर की डिजिटल प्लेट

हर घर का यूनिक ई-एड्रेस होगा। घरों के बाहर लगने वाली डिजिटल प्लेट पर उस मकान या भवन की पूरी कुंडली रहेगी। यह प्रोजेक्ट भोपाल में लगभग आठ साल पहले शुरू किया गया था। कुछ घरों में प्लेट लगाने के बाद इसकी बहुत उपयोगिता नहीं देखते हुए प्रोजेक्ट ड्रॉप कर दिया गया था। अब यही योजना इंदौर लागू करने जा रहा है।


दरअसल, आंध्रप्रदेश और तेलंगाना में कुछ जगह डिजिटल एड्रेस का प्रोजेक्ट किया गया था। इसी तर्ज पर भोपाल स्मार्ट सिटी ने वर्ष 2018 में इसे राजधानी में लागू करने की कवायद शुरू की थी। हैदराबाद की जिपर कंपनी को डिजिटल एड्रेस जनरेट करने का काम सौंपा गया था। इस पर पांच करोड़ रुपए खर्च होने का अनुमान लगाया गया था। इसके लिए आठ महीने का समय दिया गया था। कंपनी ने चार इमली, शिवाजी नगर के कुछ मकानों में डिजिटल एड्रेस की प्लेट भी लगा दी थी।

 
टैक्स कलेक्शन से लेकर आपात स्थिति में मिलती मदद 


इस अल्फा न्यूमेरिक डिजिटल एड्रेस में शहर को भेल, बैरागढ़, पुराना शहर, नया शहर जैसे उप नगरों में बांटा जाना था। हर उप नगर का एक कोड होता। इसके बाद मोहल्ले और गली के कोड रहते। इसी आधार पर डिजिटल एड्रेस जनरेट होता। फिर किसी भी आपात स्थिति में क्यूआर कोड बताना होता और फायर ब्रिगेड, एंबुलेंस या पुलिस को वहां तक पहुंचने के लिए किसी और जानकारी की जरूरत नहीं होती। यदि किसी आपारधिक वारदात की स्थिति में फोन नहीं कर सकते हैं तो डिजिटल एड्रेस मदद करेगा। एड्रेस को भोपाल प्लस एप से जोड़ा जाना था। एप पर एक रेड बटन रहता । इसको दबाते ही पुलिस थाना को सीधे सूचना पहुंच जाती। इसके अलावा डोर टू डोर कचरा कलेक्शन को भी इससे जोड़ा जाता। सफाईकर्मियों के लिए कोड स्कैन करना जरूरी होता। इससे पता चल जाता कि कितने घरों से वास्तव में कचरा कलेक्शन हुआ।


नगर निगम, स्मार्ट सिटी की लापरवाही से नहीं हो पाया लागू


नगर निगम और स्मार्ट सिटी की लापरवाही के कारण यह परियोजना सफल नहीं हो पाई। स्थिति यह रही कि कुछ मकानों में डिजिटल एड्रेस प्लेट लगाने और अन्य क्षेत्रों में इसे जनरेट करने के लिए हुए सर्वे पर कंपनी राशि खर्च कर चुकी थी। स्मार्ट सिटी को उसे इसका भुगतान करना पड़ा। जिन घरों के बाहर डिजिटल एड्रेस प्लेट लग चुकी थी, वह केवल शोपीस बन कर रह गई।