किताबी ज्ञान के अलावा स्वरोजगार तैयार करने जैसा नहीं कोई सेलेबस

रीवा | प्राइवेट हो या सरकारी, किसी भी कॉलेज में छात्रों को सिर्फ पढ़ाई कराई जाती है और नौकरी कैसे मिले, इसी को लक्ष्य बनाया जाता है। परंतु कॉलेजों से निकलने वाले छात्र उद्यमी कैसे बनें, वह स्वरोजगार कैसे तैयार करें, इसका प्रशिक्षण देने वाला कोई नहीं है। विडम्बना की बात यह है कि प्रत्येक वर्ष जिले से हजारों छात्र बड़ी-बड़ी डिग्रियां लेकर इसी उम्मीद से कॉलेज से निकलते हैं कि उन्हें अब नौकरी मिल जाएगी। हालांकि कइयों को अच्छी नौकरी मिल भी जाती है मगर ज्यादातर छात्र बेरोजगारी का दंश झेलते रहते हैं और जिस तरह की उन्होंने पढ़ाई की है, उस स्तर की नौकरी उन्हें नहीं मिल पाती है।

ज्ञात हो कि सत्र 2014-15 में उच्च शिक्षा विभाग ने कौशल विकास प्रशिक्षण की शुरुआत की थी। इस प्रशिक्षण के प्रारंभिक चरण में मॉडल साइंस कॉलेज में कुछ छात्रों को प्रशिक्षण दिया गया मगर धीरे-धीरे कौशल विकास प्रशिक्षण ठप पड़ गया। नतीजतन पिछले सात साल से इस विकास प्रशिक्षण के जरिए किसी भी छात्र को खुद का रोजगार खोजने की ट्रेनिंग नहीं दी जा सकी। जबकि ऐसी योजनाएं बेरोजगारी के दर को काफी कम कर सकती हैं। विडम्बना की बात यह है कि सरकार कौशल विकास प्रशिक्षण को जैसे भूल गई हो।

न तैयार हुए लैब, न ही छात्रों को मिली ट्रेनिंग
जीडीसी के कौशल विकास प्रशिक्षण प्रभारी से मिली जानकारी के मुताबिक एजेंसी को अपने प्रेक्टिकल लैब कालेज में तैयार करने थे। संभाग के महाविद्यालयों में विद्यार्थियों को कम्प्यूटर की ट्रेनिंग दी जानी थी जिसमें कई तरह के पाठ्यक्रम शामिल थे। इसके लिए एजेंसी को कॉलेजों में कम्प्यूटर लैब स्थापित करने थे। कालेज उसे स्थान देने के लिए तैयार था मगर एजेंसी द्वारा लैब नहीं लगाई गई। कुछ दिन बाद एजेंसी ने काम करने से इंकार कर दिया। जिसके बाद उच्च शिक्षा विभाग द्वारा दोबारा कोशिश नहीं की गई। 

सिर्फ सतना में संचालित है केन्द्र
कौशल विकास प्रशिक्षण का संभागीय केन्द्र भले रीवा हो मगर यहां इसका वजूद नहीं बचा है। इसकी वजह यह भी है कि इस प्रशिक्षण केन्द्र के लिए सतना में अलग से भवन बनाया गया है। जहां छात्रों को बकायदा ट्रेनिंग दी जाती है और स्किल डेवलपमेंट प्रोग्राम चलाया जाता है।

महज एक दफ्तर बनकर रह गया प्रशिक्षण केन्द्र
उच्च शिक्षा के स्तर को बढ़ावा देने के लिए शुरू की गई योजना का लाभ किसी छात्र को नहीं मिल पाया। कॉलेजों के साथ जिन एजेंसियों का अनुबंध हुआ था वह आगे नहीं बढ़ पाया। जिम्मेदारों की उदासीनता की वजह से कॉलेजों में कौशल विकास केन्द्र सिर्फ एक दफ्तर बनकर रह गए और प्रोफेसरों को केन्द्र का प्रभारी बना दिया गया। बाद में कालेज प्रबंधन ने भी दोबारा साझेदारी की प्रक्रिया शुरू नहीं की न ही उन एजेंसियों के खिलाफ कार्रवाई नहीं की गई।

यह सच है कि विशेष प्रशिक्षण केन्द्र लम्बे समय से बंद पड़े हैं। इन केन्द्रों से बेरोजगारी काफी हद तक कम की जा सकती है। शासन कौशल विकास प्रशिक्षण केन्द्रों के प्रति काम कर रही है। जिनके जल्द ही दोबारा शुरू होने की उम्मीद है।
प्रो. केएल जायसवाल, नोडल अधिकारी कौशल विकास प्रशिक्षण केन्द्र