मऊगंज में छात्रावासों की बिगड़ी व्यवस्था! छात्रावासों में फर्जी उपस्थिति के नाम पर विभाग में चल रहा बड़ा खेल
मऊगंज जिले में अनुसूचित जाति, जनजाति एवं अन्य विभागों द्वारा संचालित छात्रावासों में फर्जी उपस्थिति दर्ज कर सरकारी बजट का दुरुपयोग किया जा रहा है। जुलाई माह के अंतिम पखवाड़े में छात्रावासों में दर्ज छात्रों की वास्तविक उपस्थिति अत्यंत कम पाई गई, लेकिन रिकॉर्ड में सौ प्रतिशत उपस्थिति दर्शाई जा रही है।

राजेंद्र पयासी- मऊगंज
आजाक विभाग सहित अन्य विभागों के छात्रावासों के नाम पर कई संस्थाओं का संचालन हो रहा है। किंतु वहां के यानी छात्रावासों के रिकॉर्ड में जिम्मेदारों द्वारा जो स्थिति दिखाई जाती है वहां होती नहीं है। क्योंकि मॉनिटरिंग नहीं होती इसलिए सही जानकारी प्रकाश में नहीं आती।
जुलाई माह का अंतिम पखवाड़ा चल रहा है लेकिन छात्रावास में दर्ज छात्रों के तुलना में उपस्थिति अति न्यून है। और छात्रावास के जिम्मेदारों द्वारा छात्रों की पर्याप्त उपस्थित रजिस्टर में दर्ज की जा रही है। यही कारण है कि अनुपस्थित छात्रों की उपस्थिति दर्ज कर उनके नाम पर खर्च होने वाले बजट का बंदर बांट कर लिया जाता है।
यह सब जिम्मेदार विभाग के जिम्मेदारों की मिली भगत से होता है। क्योंकि बजट तो जिला स्तर से जारी होता है। छात्रों के नाम पर कितना बजट मिलता है और कितने छात्रों की उपस्थिति के नाम पर उसे प्रतिमाह व्यय किया जाता है।
यह सब यदि पता किया जाए तो छात्रावासों के नाम पर व्यापक पैमाने पर खेल हो रहा है। किंतु विभागीय अधिकारियों का नियम अनुसार इस पर ध्यान नहीं जाता।
छात्रावास में रहते हैं नाम मात्र छात्र, किंतु रिकॉर्ड में अधिक--
बताया गया है कि अनुसूचित जाति बालक बालिका एवं कस्तूरबा गांधी जैसे जिले में संचालित छात्रावासों में निर्धारित सीटों के अनुसार छात्र संख्या दर्ज की जाती है। किंतु जब मौके पर देखा जाए तो यह संख्या आधी या चौथाई भी नहीं होती इसका मतलब है कि जिन छात्रों की फर्जी उपस्थिति दिखाई जाती है।
उसके नाम पर रिकॉर्ड में मनमानी खर्च दिखाकर राशि हजम की जाती है। सबसे खराब स्थिति अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति छात्रावासों की है जहां जिम्मेदार अधीक्षकों एवं मंडल संयोजकों द्वारा शासन के आदेश एवं योजना को जमीनी रूप देने के लिए जिम्मेदारी नहीं निभाई जाती।
यदि कोई छात्रावास 50 सीटर है तो वहां उपस्थित सत प्रतिशत या उससे कुछ कम दिखाई जाती है। जबकि वास्तविक उपस्थिति बहुत कम होती है। शहर से लेकर ग्रामीण क्षेत्रों तक के छात्रावासों में भी यही खेल होता है। जहां हर महीने कई लाख का बंदर वाट हो जाता है।
इस तरह की उपस्थिति का मतलब है कि फर्जी उपस्थिति दिखाकर छात्रों के नाम पर मिलने वाले बजट का बंदर वांट किया जाना इस गणित से समझा जा सकता है। कि छात्रावास में किस तरह का खेल खेला जा रहा है।
बताया जाता है कि एक छात्र के नाम पर एक निश्चित बड़ी राशि जारी की जाती है। किंतु जब छात्रावास में जिन छात्रों के नाम पर फर्जी उपस्थिति दर्ज की जाती है। तो समझा जा सकता है की प्रति छात्र के नाम पर हर महीने कितना बड़ा खेल किया जाता है।
नहीं मिलते मौके पर जिम्मेदार-
जब कोई कभी जांच करने भी पहुंचता है। तो उसे बता दिया जाता है की अधीक्षक साहब बाजार में राशन लेने गए हैं या विशेष कार्य से अन्यत्र गए हैं जबकि अधीक्षक छात्रावासों में यदा कदा ही पहुंचते हैं। रात में तो जिम्मेदार अधीक्षक छात्रावास में कभी नहीं रुकते।
कुछ अधीक्षक तो ऐसे हैं कि जिनका निवास मुख्यालय से बाहर रहता है और पदस्थापना दूरस्थ छात्रावास में है। बताया तो यह भी जाता है कि बच्चों को मीनू के अनुसार नाश्ता एवं खाना भी नहीं मिलता है। जबकि यदि जांच की जाए तो खुद-ब-खुद हकीकत सामने आ जाएगी।
अन्य छात्रावासों की क्या होगी स्थिति--
जब छात्रावासों की स्थिति इतनी बदतर है तो समझा जा सकता है कि वहां बच्चों की हालत क्या होगी। अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के नाम पर इस तरह के छात्रावासों का संचालन इसलिए हो रहा है ताकि यहां बच्चों को सुविधाजनक तरीके से रखा जा सके।
वह अपनी पढ़ाई कर सके। और शिक्षित बन सके। उन्हें आवास एवं भोजन आदि की चिंता से मुक्त रखा जा सके। किंतु जहां सुविधा के नाम पर असुविधा होगी बच्चों को खाना एवं नाश्ता समय पर नहीं मिलेगा इतना ही नहीं गुणवत्ता के अनुसार नहीं मिलेगा इसी तरह सोने के लिए शासन की योजना अनुसार बिस्तर नहीं मिलेंगे।
पढ़ने के लिए फर्नीचर नहीं उपलब्ध होगा। पेयजल एवं अन्य सुविधाओं का अभाव होगा नियमित रूप से छात्रावासों की मॉनिटरिंग नहीं होगी यदि होगी तो दिखाने के लिए खाना पूर्ति के रूप में सब कुछ ओके बता दिया जाएगा।
इस तरह की स्थिति जहां होगी वहां एसटी एसएसटी के छात्रावासों के संचालन का योजनानुसार औचित्य साबित नहीं हो सकता। सवाल यह भी है के एसटी एसएसटी के बच्चों की शिक्षा स्वास्थ्य और आदि योजनाओं में सुविधा देने के नाम पर तो जिम्मेदारों द्वारा बड़ी-बड़ी बातें की जाती है यहां तक की साशन की तरफ से पर्याप्त बजट भी उपलब्ध करवाया जाता है।
किंतु जहां इस तरह की योजनाओं का संचालन किया जाता है। वहां मौके पर जो दिखता है वह चौंकाने वाला होता है।