MP NEWS : मां के पेट में बच्चों की हत्याएं मानवता पर कलंक- कैलाश सत्यार्थी
नोबल शांति पुरस्कार विजेता और मशहूर बाल अधिकार कार्यकर्ता कैलाश सत्यार्थी ने गाजा और फिलिस्तीन में बच्चों के साथ हो रहे भीषण अत्याचारों को लेकर बड़ा बयान दिया है। उन्होंने कहा कि गाजा और फिलिस्तीन में बच्चों के साथ जो कुछ हो रहा है, वह पूरी मानवता के लिए शर्मनाक है।

भोपाल. नोबल शांति पुरस्कार विजेता और मशहूर बाल अधिकार कार्यकर्ता कैलाश सत्यार्थी ने गाजा और फिलिस्तीन में बच्चों के साथ हो रहे भीषण अत्याचारों को लेकर बड़ा बयान दिया है। उन्होंने कहा कि गाजा और फिलिस्तीन में बच्चों के साथ जो कुछ हो रहा है, वह पूरी मानवता के लिए शर्मनाक है। लंबे समय से फिलिस्तीन के निरपराध बच्चों, महिलाओं और पुरुषों को गुलाम बनाया। इसके दुष्परिणाम आज भी देखने को मिल रहे हैं। तब से लेकर अब तक कई मासूम बच्चे जन्म ले चुके हैं, कुछ तो मां के पेट में ही मार दिए गए। यह बात नोबल शांति पुरस्कार विजेता और मशहूर बाल अधिकार कार्यकर्ता कैलाश सत्यार्थी ने कही।
उन्होंने कहा गाजा और फिलिस्तीन में बच्चों की हत्याएं और बच्चों के साथ रक्तपात पूरी मानवता पर कलंक है। अगर एक भी निरपराध बच्चा युद्ध या हिंसा में मारा जाता है, तो समझ लीजिए कि संसार अभी सभ्य नहीं हुआ और यह गाजा फिलिस्तीन के बच्चों के साथ हो रहा है। कैलाश सत्यार्थी सोमवार को भोपाल एनआईटीटीटीआर के स्थापना दिवस कार्यक्रम के लिए भोपाल पहुंचे थे।
चाइल्ड पोर्नोग्राफी की बढ़ती मांग चिंता का विषय
उन्होंने बताया कि दुनिया में आज भी 20 से 25 करोड़ बच्चे शिक्षा से वंचित हैं और करीब 16 करोड़ बच्चे बाल मजदूरी और गुलामी का शिकार हैं। इसके साथ ही उन्होंने बच्चों के खिलाफ बढ़ते अपराधों पर चिंता जताते हुए कहा कि चाइल्ड पोर्नोग्राफी और यौन शोषण की सामग्री की मांग लगातार बढ़ रही है, जिससे मासूम बच्चे बुरी तरह प्रभावित हो रहे हैं। सत्यार्थी ने कहा कि बच्चों में एकाकीपन की भावना बढ़ती जा रही है। माता-पिता बच्चों से दिल की बात नहीं कर पाते, ‘बच्चे अपने माता-पिता से खुलकर बात नहीं कर पाते। यह एक भावनात्मक संकट है, जिसे समझना और हल करना जरूरी है।
दियासलाई मेरे जीवन की सटीक परिभाषा
अपनी आत्मकथा ‘दियासलाई’ के बारे में बात करते हुए कहा कि इसका शीर्षक उन्होंने सोच-समझकर रखा है। उन्होंने कहा, दियासलाई यानी खुद को जलाने के लिए तैयार रहना, ताकि समाज में नई रोशनी की शुरुआत हो सके। मुझे लगता है कि यह मेरे जीवन की सबसे सटीक परिभाषा है। भारत की प्रगति पर बोलते हुए सत्यार्थी ने कहा, देश ने कई क्षेत्रों में तरक्की की है, और सरकारें भी मानवाधिकारों को लेकर काम कर रही हैं। लेकिन अब समय है कि हम कानूनी व्यवस्था से आगे बढ़कर मानवाधिकारों की एक मजबूत संस्कृति बनाना हमारी जरूरत है।